The world we have created is a product of our thinking; it cannot be changed without changing our thinking. -Albert Einstein

Monday 29 October 2012

Lajja...

चिथड़ो से अपना दामन छिपाये,उस औरत को देख
क्या उसे लज्जा नही आती ?
क्या उसकी नज़रें शर्म से नहीं झुकती ?
पर क्या करे वह बेसहारा स्त्री
जब उसके बच्चे की रोनी सूरत और भूखे पेट में धड़क्ती आग
उसे खुद को शर्मसार करने पर मजबूर करदे
उस पर यह निर्लज समाज उसकी लाचारी को उसकी बेहयायी का नाम दे दे
और उसकी जीवनयापन की चेष्टा को उसकी चरित्रहीनता का सम्बल घोषित कर दिया जाये
तो यह बताओ कि लज्जा आखिर किसे आनी चाहिये ?
उस स्त्री को या उसे तार -तार करने वाली नज़रों को ?

No comments:

Post a Comment