The world we have created is a product of our thinking; it cannot be changed without changing our thinking. -Albert Einstein

Sunday 27 April 2014

Mujhe udne do...!!


है गगन चूमता यह आसमान 
मुझे उड़ने दो ,है उड़ने की चाह। 

मेरी कल्पनाओं के घोड़े हो रहे हैं बेलगाम ,
ढूंढने दो उन्हें उनकी राह। 



दूर किसी सुनसान टापू पर 
है कोई अनजान सा घर ,

मेरे स्वप्न में आया है कोई 
कौन है वह ,मुझे ना कोई खबर। 

जब नींद टूटी मेरी ,
स्वप्न रह गया अधूरा 
पर मैंने अपने आप को 
फिर आइने में घूरा। 

एक भीनी सी मुस्कान थी मुख पर 
थी आँखों में एक नयी चमक 
जो मन भटक रहा था दर -दर 
हो गया स्थिर बस उसी शंड। 


मुझे उड़ने दो ,है उड़ने की चाह 
मेरे पाँव नहीं टिकते ज़मीन पर 

करनी है आसमानों की सैर 
आज स्वछंद हैं कल्पनाएँ छुपी भीतर। 

Thursday 24 April 2014

Mahanta...


वो देख रही थी उसे पर किस भाव से
उसे स्वयं नही था ग्यात ,
इस सोच में डूबी थी वो
है यह कैसी सौगात।

कर्तव्य था,या था वह मोह
समझ नहीं पा रही थी वो।
जिस व्यक्ति के पास बैठी  थी
उसी से  अनजान थी वो।

उसे याद आ गया हर एक वो शंड
जब जब उसका हुआ था तिरस्कार ,
हर पल जब वो समझाती थी खुद को
उसके नहीं ऐसे संस्कार।

है समाज की विवशता या कर्तव्यनिष्ठा ,
आज भी वो अभिग्न है इस बात से।
पति धर्म का त्याग करे
और लिप्त हो जाये वैराग्य से।

प्रेम की आशा न उसे पहले थी न है  आज
एक नारी की महानता है देना ,
देना बिना अपेक्षा
सिर्फ नहीं यह लोक -लाज।

है पनप उठी उसमे उदासीनता
घृणा की परते भी हो गयीं हैं ओझल ,
यह मोह नहीं ,कर्त्तव्य भी न था
यह थी सिर्फ  एक स्त्री की महानता।

Thursday 3 April 2014

Kaun hu main?



यह काली स्याही सी मेरी परछाई
कौन हू में ,क्या है यह मेरा साया ?
किस ओर चला मेरा अंतर्मन
कभी ग्रीष्म तो कभी छाया।

एक बार पलटकर देखा मैंने ,
अपने प्रतिबिंब को बड़े गौर से 
कौन हूँ मैं ,यह रूप सजग
खुद से भिन्न मेरी काया।

जब देखा मैंने अपनी आँखों में
वह चमक ,वह अश्रु  की धारा
कौन हूँ मैं ,स्वयं से अनजान
कैसी उलझी यह मधुमाया।

दूर कहीं एक दो राहे पर
मिल जाऊँ मैं अपने आप से अगर
है पूर्ण विशवास मैं पहचानुगी
क्यों मेरा मन है रुस्वाया।