The world we have created is a product of our thinking; it cannot be changed without changing our thinking. -Albert Einstein

Saturday 24 November 2012


फ़िर कर बैठा दिल ऐसी गुस्ताखी,
करता रहा यह इस कदर इनकार ,
डरता रहा करने से कबूल।
पर  पाना नहीं होता हर चाहत को ,समझ गया यह नादान दिल।
काबू में नहीं होती हर एक धड़कन ,पहचान गया यह दगाबाज़ दिल।
हर कोशिश को करके अनसुना ,यह जानते हुए कि इस गुस्ताखी का कुछ ना है अंजाम,
ना जाने क्यों फिर से पंख पसारने लगा यह अल्लहड़ दिल।