The world we have created is a product of our thinking; it cannot be changed without changing our thinking. -Albert Einstein

Sunday 12 February 2017

है आरज़ूओं की कश्ती मेरी हिचकोले खा रही ,
बस सुकून की आस थी दिल में दबी। 
अब आये हो आंखों में प्यार लेके ,लंबे इंतेज़ार के बाद 
सुकून या जुनून की है ये आस दबी दिल में ,में समझ न सकी। 

किसी पुरानी गज़ल में सुना था ,
किसी पुरानी गज़ल में सुना था ,
"रंजिश ही सही ,दिल दुखने के लिए आ ,आ फिर से मुझे छोड़ जाने के लिए आ। "
खफा हो तो भले पल भर के लिए दूर चले जाना ,
लेकिन आये हो तो छोड़ जाने की बात ज़ेहन में भी न लाना। 
रंजिश तो बैरो से करते हैं ,आये तो अपना बनाने के लिए आ। 
इस नादां  दिल की हर खता पे ,
दिल दुखने के लिए नहीं ,दिल अपनाने के लिए आ।