The world we have created is a product of our thinking; it cannot be changed without changing our thinking. -Albert Einstein

Monday 29 October 2012

मेरी आँखों में छाया है नींद का पेहरा
पलकें हैं भारी
मेरी आंखे थक चुकी हैं किसी के इंतज़ार में तकते -तकते
थक चुकी हैं आसू बहा के
थक चुकी हैं सपने देख के किसी के मिलन की
आज चाहती हैं मेरी आंखें कुछ पल चैन के
तन्हाई की परछाई से परे,कुछ पल तारुफ के ....
आँखों ने'ली अंगड़ाई
कहती हैं ,अब तू भी सो जा क्युकि यह  रात का समां
हमेशा इतना हसीन न रहेगा   

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