The world we have created is a product of our thinking; it cannot be changed without changing our thinking. -Albert Einstein

Sunday 27 April 2014

Mujhe udne do...!!


है गगन चूमता यह आसमान 
मुझे उड़ने दो ,है उड़ने की चाह। 

मेरी कल्पनाओं के घोड़े हो रहे हैं बेलगाम ,
ढूंढने दो उन्हें उनकी राह। 



दूर किसी सुनसान टापू पर 
है कोई अनजान सा घर ,

मेरे स्वप्न में आया है कोई 
कौन है वह ,मुझे ना कोई खबर। 

जब नींद टूटी मेरी ,
स्वप्न रह गया अधूरा 
पर मैंने अपने आप को 
फिर आइने में घूरा। 

एक भीनी सी मुस्कान थी मुख पर 
थी आँखों में एक नयी चमक 
जो मन भटक रहा था दर -दर 
हो गया स्थिर बस उसी शंड। 


मुझे उड़ने दो ,है उड़ने की चाह 
मेरे पाँव नहीं टिकते ज़मीन पर 

करनी है आसमानों की सैर 
आज स्वछंद हैं कल्पनाएँ छुपी भीतर। 

No comments:

Post a Comment