The world we have created is a product of our thinking; it cannot be changed without changing our thinking. -Albert Einstein

Friday 5 June 2020

Yeh daur

ये कैसा दौर आ रहा
क्यों सृष्टि रुष्ट हो रही
क्यों धरती है यूँ रो रही
अबोध जानवर भी क्यों
मानवता में विश्वास खो रही

यह कैसा दौर आ रहा
महामारी का प्रकोप है गहरा रहा
प्रवासी कामगार भी ,विवष हुआ घबरा रहा
क्यों धरती इतना कपकपा रही
किस आकस्मिक घटना की ओर चिता रही

क्यों चक्रवात है आ रहा
घरों ,खेतों को यूँ अपने में समा रहा
क्यों टिड्डियाँ यूँ मंडरा रहीं
विध्वंस्ता का राग गा रहीं

यह कैसा दौर है आ रहा
क्यों वातावरण में मची है त्राही
क्यों डरे सहमे से  चार दीवारी  में बैठे हैं राही
क्या कलयुग का अंत है आ रहा ?

यह कैसा दौर है आ रहा
क्या कल्की सामने आएगा
इन विषमताओं से शरण दिलाएगा
या अंत है यह किसी अंतहीन समय का
या मानव कुकर्मो का निष्कर्ष यह

क्या फिर एक मौका मिल पायेगा ?
क्या फिर एक नया दौर आएगा ?
जब मनुष्य मानवता पूर्ण पुनः कहलाया जायेगा। 

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