The world we have created is a product of our thinking; it cannot be changed without changing our thinking. -Albert Einstein

Monday 28 September 2015



भीड़ में साथी अक्सर मिल जाते हैं
सफर में हमराही टकरा जाते हैं
सर उठा के देखा जब मैंने जमात में
कोई गैर ना मिला अनजाने ही साथ में।

फूलों की लाज ,सुगंध भरी
ले बुन लाया में एक माला
बस तू दिखी उस मेह्खाने में
और खींचा  चला आया में मधुशाला।

हाथों में लिये जज़्बातों की कतरन
बेहेकतें हैं जब जज़्बात ,ये हाथ भी ना जाने क्यों बेहक जातें हैं।


लम्हे ,घड़ियाँ ,साल तो कभी अरसे निकल जाते हैं
कहने को लफ्ज़ नहीं रहते
पर आँखों की ज़ुबाँ ही कुछ अलग होती है
कहते हैं अल्फाज़ो से ज्यादा बातें आँखों से होती हैं।


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