गैरों से घिरना कभी पसंद ना था ,आज अपनो से मिलना भी थोड़ा अजीब सा लगता है।
अकेलेपन में ना जाने क्यों मुझे सुकून सा मिलता है।
खुद से बातें करने वालो को लोग पागल समझा करते हैं ,
खुद से बातें करना ,यूँ पन्नों पे खुद को शब्दों में समेट लेना अच्छा सा लगता है।
जो पल तन्हाई के लगते थे बेगाने ,आज उन पलों को हथेलियों में सहेजना सीख लिया मैंने।
कोई चाहने वाला मिल जाये ,इस खोज में कब खुद को इस कदर चाहने लगी
क़ि खुद की चाहत में किसी का खलल अब सही सा नहीं लगता ।
यह साल आज बीत जायेगा ,एक नयी उमंग के साथ नया साल खड़ा है मेरी चौखट पर
दुसरो के साथ जीने की ख्वाइश से ज्यादा ,खुद जीना सीख सा लिया है मैंने।
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