फ़िर कर बैठा दिल ऐसी गुस्ताखी,
करता रहा यह इस कदर इनकार ,
डरता रहा करने से कबूल।
पर पाना नहीं होता हर चाहत को ,समझ गया यह नादान दिल।
काबू में नहीं होती हर एक धड़कन ,पहचान गया यह दगाबाज़ दिल।
हर कोशिश को करके अनसुना ,यह जानते हुए कि इस गुस्ताखी का कुछ ना है अंजाम,
ना जाने क्यों फिर से पंख पसारने लगा यह अल्लहड़ दिल।
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