एक सूनी रात का अँधेरा था ,
रेशम सी चाँद की रौशनी छन के आ रही थी जैसे।
कोने में जल रही भीनी लौ की नर्माहट ,
तुम्हारे पास होने का एहसास सा दिला रही थी।
रातेँ तो कई बीती हैं पहले भी
पर वो रात खासी अधूरी थी ,
आँखों में आज हलकी नमी थी ,दिलों में दूरी थी।
उस सुनी रात के अंधेरे में ,
चाँद भी ढलने को आ रहा था अब।
नींद की एक छोटी सी बूँद भी आँखों में गिरने ना पायी थी
झरोखे से झाका तो चाँद को भी अधूरा पाया।
झिलमिलाती रौशनी में अपने आप को समझाया , कभी हम भी पूरे हुआ करते थे।
बस तुम और तुम्हारी याद सताये जा रही थी
वो भी क्या रात थी ,वो भी क्या याद थी।
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