I tried learning a little bit of Urdu lately.I had an intense desire to learn this beautiful language and came up with a few couplets by myself.
चेहरे पर शराफत का नक़ाब रहने दे मुल्तज़ा ,
बेपर्दा हो गये तो बेआबरू हो जायेंगे।
भले ही मुलाकात मुख़्तसर सी हो ,आप से हामारी शनासाई मुददत से हो
मिलना मिलाना तो बस एक बहाना है ,आप से आखिर हमरी हमनवाई तो हो।
कभी वह पर्दादारी ,कभी वो दहन्दरी
है क्या शख्सियत आपकी ,हम पहचान न सके।
इन परिंदो की सरहदें क्या ,इनपर कोइ न पाबंदी है
है खुला ग़रदूँ इनका मैदान ,और न तलख रुसवाई है।
वो गरम मिजाज़ ,आलम -ए -वफा कभी हो जाते हैं
पर हमारे इश्क़ की ठंडी तासीर ऐसी ,की चाह कर भी खफा न हो पाते हैं।
चेहरे पर शराफत का नक़ाब रहने दे मुल्तज़ा ,
बेपर्दा हो गये तो बेआबरू हो जायेंगे।
भले ही मुलाकात मुख़्तसर सी हो ,आप से हामारी शनासाई मुददत से हो
मिलना मिलाना तो बस एक बहाना है ,आप से आखिर हमरी हमनवाई तो हो।
कभी वह पर्दादारी ,कभी वो दहन्दरी
है क्या शख्सियत आपकी ,हम पहचान न सके।
इन परिंदो की सरहदें क्या ,इनपर कोइ न पाबंदी है
है खुला ग़रदूँ इनका मैदान ,और न तलख रुसवाई है।
वो गरम मिजाज़ ,आलम -ए -वफा कभी हो जाते हैं
पर हमारे इश्क़ की ठंडी तासीर ऐसी ,की चाह कर भी खफा न हो पाते हैं।