The world we have created is a product of our thinking; it cannot be changed without changing our thinking. -Albert Einstein

Sunday, 11 May 2014

Aarz kiya hai....

I tried learning a little bit of Urdu lately.I had an intense desire to learn this beautiful language and came up with a few couplets by myself.

चेहरे पर शराफत का नक़ाब रहने दे मुल्तज़ा ,
बेपर्दा हो गये तो बेआबरू हो जायेंगे।

भले ही मुलाकात मुख़्तसर सी हो ,आप से हामारी शनासाई मुददत से हो
मिलना मिलाना तो बस एक बहाना है ,आप से आखिर हमरी हमनवाई तो हो।

कभी वह पर्दादारी ,कभी वो दहन्दरी
है क्या शख्सियत आपकी ,हम पहचान न सके।

इन परिंदो की सरहदें क्या ,इनपर कोइ न पाबंदी है
है खुला ग़रदूँ इनका मैदान ,और न तलख रुसवाई है।

वो गरम मिजाज़ ,आलम -ए -वफा  कभी हो जाते हैं
पर हमारे इश्क़ की ठंडी तासीर ऐसी ,की  चाह कर भी खफा न हो पाते हैं।

Monday, 5 May 2014

yeh ishq nahi asaan...!!!


यह प्यार न था ,बस था एक भ्रम 
है इश्क़ में ना जाने कितने गम। 
तुम्हे खबर ना है क्या चीज़ है यह ,
यह इश्क़ लड़खडादे बढ़ते कदम। 

कभी किसी सयाने शायर ने 

बड़ी कुर्बत से था किया बायाँ ,
की यह इश्क़ नहीं आसान 

बस इतना समझ लीजिये ,एक आग का दरिया है और डूब के जाना है। 

शायर की बात बेशक सायानी ,पर था वह असल मैं ज्ञानी। 
यह इश्क़ है भाप ,नही यह गरम पानी,
जिसकी गर्मी से जल जाती है खाल ,
और छोड़ जाती है एक वीभत्स निशानी।