जाड़ो की कडकडाती रात , और इस रात का पसरा सन्नाटा ,
मेरी तन्हाई ने आज फिर दी दस्तक और यादो का जमा ऐसा समां
की यह मेरी सासों की गर्मी है या तुम्हारे एहसास की तपन , कुछ मालूम न पड़ा
मेरे कानो में उठ रही आवाजें,आस -पास बिखरे तुम्हारे आखरी ख़त के उड़ने की है या मेरे दिल के
तार -तार की होने की ,कुछ मालूम न पड़ा
यह आँखों की नमी है या दिल में उठे सैलाब का पानी ,कुछ मालूम न पड़ा
यह तुमसे फिर मिलने की बेचैनी है या तुम्हे खो की मायूसी,कुछ मालूम न पड़ा
इस रात की रुसवाई और सब कुछ जानते हुए तुम्हे वापस पाने की वो बेवजह बेताबी का न जाने फिर क्यों मेरे मन में घिरना ..........कुछ मालूम न पड़ा !!!
मेरी तन्हाई ने आज फिर दी दस्तक और यादो का जमा ऐसा समां
की यह मेरी सासों की गर्मी है या तुम्हारे एहसास की तपन , कुछ मालूम न पड़ा
मेरे कानो में उठ रही आवाजें,आस -पास बिखरे तुम्हारे आखरी ख़त के उड़ने की है या मेरे दिल के
तार -तार की होने की ,कुछ मालूम न पड़ा
यह आँखों की नमी है या दिल में उठे सैलाब का पानी ,कुछ मालूम न पड़ा
यह तुमसे फिर मिलने की बेचैनी है या तुम्हे खो की मायूसी,कुछ मालूम न पड़ा
इस रात की रुसवाई और सब कुछ जानते हुए तुम्हे वापस पाने की वो बेवजह बेताबी का न जाने फिर क्यों मेरे मन में घिरना ..........कुछ मालूम न पड़ा !!!
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