The world we have created is a product of our thinking; it cannot be changed without changing our thinking. -Albert Einstein

Monday, 30 July 2012

जाड़ो की कडकडाती रात , और  इस रात का पसरा सन्नाटा ,
मेरी तन्हाई ने आज  फिर दी दस्तक और यादो का जमा ऐसा समां
की यह मेरी सासों की  गर्मी है या तुम्हारे एहसास की तपन , कुछ मालूम न पड़ा
मेरे कानो में  उठ  रही आवाजें,आस -पास  बिखरे तुम्हारे आखरी ख़त के  उड़ने की है या मेरे दिल के
तार -तार  की होने की ,कुछ मालूम न पड़ा
 यह आँखों की नमी है या दिल  में उठे  सैलाब का पानी ,कुछ मालूम न पड़ा
यह तुमसे फिर मिलने की बेचैनी है या तुम्हे खो  की मायूसी,कुछ मालूम न पड़ा
इस रात की रुसवाई और सब कुछ जानते  हुए तुम्हे वापस पाने की  वो  बेवजह बेताबी  का न  जाने फिर   क्यों मेरे मन में घिरना ..........कुछ मालूम न पड़ा !!!

         

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