बारिश की फिसलती बून्दूं का पैगाम दूं
है हर समय अनमोल ,कुछ अछा कुछ बुरा , जीयो हर एक पल
क्यूंकि ऐसा न हो कि तुम्हे फिर याद आये बीता कल
लहरो की बेताबी को खुद में समा लो
भूलो हर ग़म ,ख़ुशी को अपना बना लो
मिलना और बिचादना तोह है नियति का खेल
कितना अजीब इत्तेफाक है हमारा मेल
जी चाहता है ,कि हर डर को पार कर लूँ
तुम्हारे चेहरे कि मुस्कान एक बार फिर गुलज़ार कर दूं
है तुमसे कुछ नाता ज़रूर ,पर इस रिशते को में आखीर क्या नाम दूं .......
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