The world we have created is a product of our thinking; it cannot be changed without changing our thinking. -Albert Einstein

Sunday, 17 June 2012

जी चाहता है इस वक्त को यूँ थाम लूं 
 बारिश की फिसलती बून्दूं का पैगाम दूं 
है हर समय अनमोल ,कुछ अछा कुछ बुरा , जीयो हर एक पल  
क्यूंकि ऐसा न हो कि तुम्हे फिर याद आये बीता कल 
लहरो की बेताबी को खुद में समा लो 
भूलो हर ग़म ,ख़ुशी को अपना  बना लो 
मिलना और बिचादना तोह है नियति का खेल 
कितना अजीब  इत्तेफाक है हमारा मेल 
जी चाहता है ,कि हर डर को पार कर लूँ 
तुम्हारे चेहरे कि मुस्कान एक बार फिर गुलज़ार कर दूं 
है तुमसे कुछ नाता ज़रूर ,पर इस रिशते को में  आखीर क्या नाम दूं .......










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