तेरे मोहपाश में बंधी हूँ मैं ,
मन भटक रहा क्यों गली गली
इस द्वंद का हल न निकल पाया
तू है अनजान ,तू है अभिग्न
तू क्यों मुझसे है रुस्वाया ?
मेरे हृदय में छिपा बस रूप तेरा
इस दर्पण को तू न देख पाया
है आँखो में तस्वीर तेरी
विस्मित हूँ मै ,पर मैंने पाया
है यही वास्त्विक ,है यही सत्य
तू मुझमे है अंदर समाया
एक बार तो झांक मेरे मन में
तू है यहीं ,जैसे मेरा साया।
है प्रेम मेरा पवन पवित्र
तू क्यों ना यह समझ पाया ?
एक बार उठा दे नज़रो से पर्दा
तू मेरे लिए तरुवर की छाया